सफर - मौत से मौत तक….(ep-21)
नंदू अंकल ने वापस जाने का मन बना ही लिया था, समीर को देखकर उसे धीरे से स्पर्श करके, उसके गाल की छुअन अपने हाथों में लेकर नंदू अंकल वापस बस स्टेशन आ गया,और घर की तरफ आने वाली बस के छत में जाकर बैठ गया।
छत में हवा बहुत तेज थी, नंदू को इस बार अपने बेटे समीर की नही बल्कि यमराज की याद आ रही थी, क्योकि इतने दिन उसके साथ लड़ते झगड़ते जो गुजारे थे,नंदू यमराज को परेशान करने का कोई मौका नही छोड़ता था, जब यमराज आराम से सोता हो और नंदू को नींद ना आती हो तो नंदू किसी झाड़ी के तिनके से यमराज को गुदगुदी लगाकर मस्ती किया करता था, कभी उसके कान में तो कभी उसके गर्दन के पास ले जाता। और तब तक करता जब तक यमराज परेशान होकर उठ ना जाये।
अगर अभी यमराज साथ होता तो पांच घंटे का ये सफर पांच सेकंड का भी ना होता।
नंदू बस की छत में बैठा था,उसके बाल उड़ रहे थे, इस पांच घंटे के सफर्मे बहुत उदास हो चुका था नंदू, सड़क किनारे पैदल चल रहे मजदूर, जिनका मुंह धूप से कालिख हो चुका था, चलती बस को देखकर कंधे पर फावड़ा रखकर वो मुस्करा रहे थे, नंदू को उल्टे चलते मुस्कराते चेहरे में काम पर से लौटकर आ रहे बाबूजी नजर आते थे। तो कभी किसी स्कूल के कपड़े पहने बच्चे को हाथ पकड़कर ला रही औरत मैं अपनी माँ कौशल्या देवी…….किसी साइकिल वाले आदमी के पीछे बैठी कोई नई नवेली दुल्हन में सरला और तुलसी नजर आ रहे थे। हर किसी को देखते हुए नंदू बस की छत में जा रहा था, लेकिन उसे शायद कोई भी नही देख पा रहा था।
बड़ी मुश्किल से पांच घंटे का सफर करके देर शाम नंदू अंकल घर पहुँचा। नंदू अकेले अकेले खाना खा रहा था। व्व बहुत दुखी था, आज भी समीर का फोन नही आया, जब दिन में किया था तो वो किसी जरूरी काम कर रहा था।
नंदू को ये लगता है कि समीर दिन में किसी जरूरी काम मे व्यस्त था।
लाकी नंदू अंकल जानते थे कि उसके लिए पापा से ज्यादा उस लड़की इशानी से बात करना जरूरी हो गया था। लेकिन नंदू अंकल को पता होने से कोई फ़र्क नही पढ़ने वाला।
कुछ दिन तक नंदू और नंदू अंकल एक साथ रहे, खुद को देखकर नंदू अंकल को बहुत बुरा लग रहा था। कितनी बड़ी गलतफहमी में था वो….समीर को कुछ केस मीले और वो जीत गया, और हर महीने नए नए केस और छोटे मोटे सरकारी काम करके अच्छे खासे पैसे कमाने लगा था समीर और अपना ही एक आफिस खोल लिया। और ऑफीस भी उसी शहर मे खोला जहाँ से पढ़ाई की थी।
नंदू ने बहुत कहा कि अपने दिल्ली में क्या परेशानी है, इधर भी केस मिल सकते है, लेकिन समीर नव बहाना लगा लिया- "पापा आपको ज्यादा पता है क्या….मैं कोई सवारी नही ढूंढ रहा जो इस स्टेशन में कम और दूसरे स्टेशन में ज्यादा मिलेंगे, समझा करो पापा……मुझे वहाँ का एक्सपीरियंस मिला है, वहाँ ज्यादा बेटर मिलेगा काम"
कारण काम बेहतर मिलने का था या नही, ये तो भगवान ही जाने, लेकिन नंदू अंकल को शक था, जरूर उस इशानी के चक्कर मे इसने वहीं आफिस खोल लिया होगा।
आफिस तक बात ठीक थी….लेकिन एक दिन….
"मैं चाहता हूँ कि आप भी मेरे साथ वहीं सेटल हो जाओ….इस घर को बेच देते है….और वहाँ एक मकान ले लेते है,अच्छा शहर है, मेरे आफिस के आसपास ही अपना घर होगा तो आसानी रहेगी काम के लिए भी" समीर बोला।
"लेकिन बेटा….इन गलियों में, इस घर के कोने कोने में यादें बसी हुई है हमारी, तुम्हारा बचपन, मेरा बचपन सब इसी में बीता है, और तुम इसे बेचने की बात कर रहे हो" नंदू ने कहा
"मुझे पता था आप यही डॉयलॉग बोलोगे….हर कहानी में हर फिल्म में जब भी किसी को मकान बेचने को कहा तो वो ऐसा ही बोलते है" समीर ने कहा।
"हाँ, अपने घर से सब एक समान प्यार करते है इसलिए….मैं हरगिज नही इसे बेचने दूँगा…." नंदू बोला।
"पापा प्लीज….मैं इस घर को इसलिए नही बेचना चाहता कि मुझे नए घर को खरीदने के लिए पैसे चाहिए…. मैं चाहता हूँ हम साथ रहे, मैं आपको अपने साथ ले जाना चाहता हूँ, और कब तक ये रिक्शा चलाओगे, अब आपके आराम से बैठकर खाने के दिन है…. आपने जिंदगी भर मेहनत ही कि है पापा….अब दिन आ गए है कि आप आराम से बैठकर खाये। पका पकाया खाना आप खाये, आपको खाना पकाना ना पड़े" समीर ने कहा।
"लेकिन इस घर में क्या दिक्कत है बेटा….यहाँ रहकर मुझे अकेलापन खलता नही है, ऐसा लगता है माँ बाबूजी और गौरी हर वक्त मेरे आसपास रहते है, अगर इस घर को बेचकर नया ले लिया तो वहां उन एहसासों से वंचित रह जाऊंगा मैं…." नंदू बोला।
इसी बात पर नाराजगी जाहिर करते हुए थोड़ा गुस्से से समीर ने कहा "जो मर चुके उनके एहसास चाहिए आपको, जो जिंदा है उसकी कोई फिक्र नही….पापा आत्मा परमात्मा….ये एहसास, ये जज्बात कुछ मायने नही रखती आज….हर चीज का सबूत चाहिए , आपको कैसे पता कि दादा दादी और मम्मी यहां मौजूद है, क्या कोई ऐसा तर्क है जिससे ये साबित होता है। ये सिर्फ आपके दिल का बहम है"
नंदू उसकी बात सुनकर सुन्न रह गया- "बोल पड़ी ना वकील की आत्मा, अब मुझसे मेरे एहसासों का भी सबूत माँग रहा मेरा बेटा" नम आंखों से नंदू बोला
समीर आगे आया और पापा के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए कहा- "पापा समझो मेरी बात, इस घर ने कभी हमारा अच्छा होने ही नही दिया, पहले दादू की डेथ, फिर मम्मी की और उसके बाद दादी की भी, और आपने जिंदगी भर रिक्शा ही चलाया, कभी कुछ अच्छा नही कर पाए। मैं यहां रहता तो शायद मैं भी कोई छोटी मोटी नौकरी पकड़कर पछता रहा होता। अच्छा हुआ मैं बाहर होस्टल चला गया….और एक बात और बतानी थी आपको, आपने जो लोन लिया था उसकी किश्त क्यो नही भरते आप….बस इंटरेस्ट इंटरेस्ट जमा करके आ जाते हो हर महीने।"
" उतनी ही कमाई होती है ना…." नंदू बोला।
"तो मुझे बोल देना था ना….खैर अब टेंशन मत लेना, आपने पैंतालीस हजार लेकर इन पांच सालों में सिर्फ पांच हजार ही कम किये थे, आज मैं गया था तो चालीस हजार जमा कर आया हूँ, अब उस बैंक में कोई लॉन नही है आपका…मेरी दो महीने की सैलरी घुस गई लेकिन कोई बात नही मेरे लिए ही लिया था लॉन।" समीर ने कहा।
नंदू की आंखे भर आयी, समीर बहुत प्यार से बात कर रहा था। और उसकी सबसे बड़ी टेंशन भी खत्म कर आया था। वैसे भी नंदू तो समीर के साथ ही रहना चाहता था, लेकिन इस घर मे….अब इस घर मे संभव नही था तो किसी और घर मे ही सही, नंदू सोचने लगा कि बेटे की बात मान लूँ या नही।
नंदू अंकल ने ये सीन देखा तो वो बोलने लगा- " आपका लॉन……वाह रे बेटे….और तेरी तो सिर्फ दो महीने की जमा राशि घुसी है, लेकिन इस बेचारे की…. इसकी तो जिंदगी भर की जमाराशि थी वो…और आप कुछ कर नही पाए बोल रहा है तू…अगर खुद के लिए कुछ करना होता तो तू आज कुछ नही कर पाता….इस नालायक ने ऑटो नही खरीदी तुझे पैसे देने के लिए…… " नंदू अंकल ने कहा।
अब नंदू खुद के पास जाकर खुद से बोलने लगा- "इसकी बातो में इमोशनल क्यो हो रहा बे……बिल्कुल मत बेचना….ये घर छोड़ने की सोचना भी मत.….क्योकि आज तक तू अपने घर रहता था, बाहर चुने के सफेद दीवार में काले रंग से लिखा है नंदकिशोर……लेकिन अब जहां तू जाएगा वो घर तेरा नही होगा….उसमे एडवोकेट समीर हाउस लिखा होगा और वो घर तुझे पल पल एहसास दिलाएगा की तू किसके घर मे आ गया है……."
नंदू अंकल की बात कौन सुन रहा था।
समीर के पापा नंदू को घर बेचने का गम था तो समीर के साथ रहने की खुशी भी, उसे खुश रखने के लिए बहुत सारी जिद किये, बहुत चुनौतियों को स्वीकार किया है, और अब अगर बुढ़ापे में घर ना बेचने की जिद करने लगा और बेटे से झगड़ा हो गया तो बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा"
कुछ महीने बाद
नया घर, नई जगह….और नए नए पड़ोसी….
बहुत महंगा घर खरीदा था….सेटलमेंट भी हो गयी थी।
एक बड़ा सा हॉल….तीन बैडरूम, एक स्टोर रूम और किचन था, तो सेकंड फ्लोर में चार बैडरूम और उसके ऊपर बहुत बड़ी छत और ढेर सारे गमले।
गमले ही थे इस घर मे जो नंदू के कहने पर लाये गए, बाकी तो सब अपनी अपनी पसंद थी, लेकिन नंदू को एक बात अटपटी लग रही थी, इधर घर को कैसे डेकोरेट करना है, कौन सा समान कहां रखना है सब बताने के लिए भी एक इंजीनियर आयी थी। जिसने दिन में खाना खाया और समीर उसे इशानी के नाम से बार बार पुकार रहा था।
नंदू ने अभी तक समीर से कोई सवाल नही किया। क्योकि इतने सारे लोग थे कोई टीवी लगाने तो कोई फ्रिज लगाने आये थे। उन्ही में थी वो लड़की जो बता रही थी कि कौन सी चीज कहां लगानी है।
"शायद ठेकेदारनी होगी" नंदू ने सोचा
बहुत हाई-फाई और स्टाइलिश थी, और पढ़ी लिखी भी। और उसकी बात कोई नही टाल रहा था, समीर को आदत थी हर बात में ऑब्जेक्शन लगाने की, मगर वो भी उसकी बात मान रहा था, इस बात से तय था कि वो ऊंचे दर्जे की अव्वल इंजीनियर या ठेकेदारनी होगी।
समीर और वो बहुत खुलकर बात कर रहे थे, उनकी डिस्कस हिंदी में चलते चलते कई बार इंग्लिश में हो रही थी, और ये बात नंदू के लिए गर्व की थी। नंदू को एक शब्द भी समझ नही आ रहा था मगर खुश था।
समीर ने पापा को अपने तरफ आते देखकर टीवी की तरफ इशारा करते हुए इशानी से कहा- " लिशन……. डू नोट डु एनी पेर्शनल टॉक इन फ्रंट ऑफ द माय फादर, डू वटेवेर यू हैव टू टॉक इन इंग्लिश , डेड डज़ नॉट अंडरस्टेण्ड"
(हिंदी- "सुनो। पापा के सामने कोई व्यक्तिगत बात मत करना, जो भी बात करनी होगी अंग्रेजी में करना, पापा को अंग्रेजी समझ नही आती।")
इशानी हंसते हुए बोली- "ओके. बट टॉक टू देम सून, दैट वी लव इच अदर एंड वांट टू गेट मैरिज"
(हिंदी- "ठीक है। लेकिन जल्दी ही उनसे बात कर लेना, की हम एक दूसरे से प्यार करते है और शादी करना चाहते है।)
समीर मुस्कराते हुए टीवी को थोड़ा सीधी करते हुए बोला- "ओके बेबे…."
नंदू बहुत खुशी महसूस कर रहा था, क्योकि एक अनपढ़ रिक्शे वाले का बेटा धड़ाधड़ अंग्रेजी में बात कर रहा था। शायद टीवी के बारे में कोई बात चल रही थी उसके हिसाब से। और टीवी भी मॉडर्न था, दीवार पर टाँकने वाला,
कहानी जारी है
Shalini Sharma
22-Sep-2021 11:55 PM
Nice
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